Class 10th Hindi क्षितिज भाग 2 CBSE Solution
Exercise- परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?…
- परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के…
- लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली…
- परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए- बाल…
- लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
- साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथहन पर अपने विचार लिखिए।…
- भाव स्पष्ट कीजिए- (क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। (ख) इहाँ…
- पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
- इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।…
- निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए- (क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही। (ख)…
- ‘‘सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा…
- संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग…
- अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
- दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए- इस शीर्ष को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।…
- उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
- अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रें में बोली जाती है?
- परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?…
- परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के…
- लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली…
- परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए- बाल…
- लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
- साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथहन पर अपने विचार लिखिए।…
- भाव स्पष्ट कीजिए- (क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। (ख) इहाँ…
- पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
- इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।…
- निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए- (क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही। (ख)…
- ‘‘सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा…
- संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग…
- अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
- दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए- इस शीर्ष को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।…
- उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
- अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रें में बोली जाती है?
Exercise
Question 1.परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
Answer:प्रस्तुत काव्य रचना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखे गये रामचरितमानस के बालकाण्ड से ली गयी है| सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव धनुष तोड़ दिये जाने पर परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने कई तर्क दिये। उन्होंने परशुराम से इस बारे में कहा की श्री राम ने आजतक खेल-खेल में कई धनुष तोड़े हैं। वे सारे धनुष कमजोर थे। किसी ने तो आजतक उन धनुषों के टूटने पर इस बारे में श्रीराम से या मुझसे पूछताछ नहीं की। उन्होंने आगे परशुराम से कहा कि जिस धनुष के टूटने की अभी आप बात कर रहें हैं वह धनुष भी काफी कमजोर था। ऐसा प्रतीत हो ही रहा था कि धनुष एक झटके में टूट जाएगा क्योंकि यह धनुष काफी पुराना लग रहा था और यह काफी जर्जर भी हो चुका था। इसमें कौन सी ऐसी अचरज की बात है कि यह श्री राम के हाथ लगाने मात्र से टूट गया।
Question 2.परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
Answer:परशुराम के क्रोध करने पर राम-लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएं हम भिन्न रूप में पाते हैं। जहाँ एक ओर राम अपनी प्रतिक्रिया में संयम का परिचय देते हैं| वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण द्वारा परशुरामको को कटु वचन कहकर वह अपने उग्र स्वभाव का ही परिचय देते हैं। शिवधनुष टूटने पर परशुराम द्वारा इस बारे में पूछने पर जहां राम शांत रहते हैं वहीं लक्ष्मण बार-बार परशुराम को अपने कटु वचनों से और अधिक क्रोधित ही पाते हैं। स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो लक्ष्मण काम बिगाड़ने वाली बात बोलते हैं। ऐसा स्वभाव उनके कम उम्र के होने के कारण पाते हैं। वह परशुराम पर अपना व्यंग्य वाण भी चलाते हैं और बार-बार वे परशुराम के ईंट का जवाब पत्थर से देते हैं। वहीं राम उन दोनों के बीच बात बिगङती देख अपने शीतल वचनों से परशुराम की क्रोधाग्नि शांत करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार श्रीराम की प्रतिक्रिया में हम मर्यादा पुरुषोत्तम की उनकी छवि की झलक पाते हैं।
Question 3.लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
Answer:मुझे लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का यह अंश ‘‘तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा। बार-बार मोहि लागि बोलावा’’ विशेष रूप से अच्छा लगा। यह अंश संवाद शैली में निम्नलिखित है-
परशुराम अपनी वीरता की डींग हाँकते हुए लक्ष्मण को डराने के लिए बार-बार फरसा दिखा रहे हैं। लक्ष्मण व्यंग्य वाणी में परशुराम से कहते है।-
लक्ष्मण- आप तो बार-बार मेरे लिए काल (मौत) को बुलाए जा रहे हैं। यहां पर रचियता गोस्वामी तुलसीदास लक्ष्मण के उग्र स्वभाव से हमें परिचित कराते हैं। लक्ष्मण जी का पाला परशुरामजी से पड़ा था जो अपने गुरु शिव के धनुष को श्री राम द्वारा तोङ दिये जाने से अति क्रोधित हुए जा रहे थे। उनकी वेदना को लक्ष्मण समझ नहीं पा रहे थे और वे परशुराम की ईंट का जवाब पत्थर से दे रहे थे। इसीलिये परशुराम द्वारा बार-बार फरसा दिखाने पर लक्ष्मण परशुराम को उकसाने हेतु व्यंग्य वाणी में उनसे कह पड़ते हैं-आप तो बार-बार मेरे लिए काल (मौत)को बुलाये जा रहे हैं।
परशुराम- तुम जैसे धृष्ट बाल के लिए यही उचित है। यहाँ पर लक्ष्मण जी के उपरोक्त ढंग से परशुराम को जवाब देने से परशुराम उन्हें उनकी हद बताते हैं। वे लक्ष्मण जी को एक हठी बालक कहकर संबोधित करते हैं। और उन्हें इशारों ही इशारों में नासमझ भी कह डालते हैं। लक्ष्मण जी के लिए परशुराम अपना व्यवहार उचित ठहराते हैं और इसिलिए वे ऐसा कह उठते हैं।
लक्ष्मण- काल कोई आपका नौकर है जो आपके बुलाने से भागा-भागा चला आएगा। यहां पर लक्ष्मण पुनः परशुराम की उन्हें हठी बालक ठहराने की बात पर उनके गुस्से को और भड़काने के उद्देश्य से ही उन्हें ऐसा कहते हैं और लक्ष्मण जी द्वारा ऐसा करने के पीछे एकमात्र कारण परशुरामजी द्वारा धनुष तोड़ने वाले यानि उनके बड़े भाई राम को दण्ड देने के बारे में भरी सभा में उद्घोषणा करने को लेकर है।
Question 4.परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वहिदित श्रत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
Answer:परशुराम ने सभा में अपने ब्रह्मचारी होने के बारे में सबको बताया। उन्होंने भरी सभा में अपने बारे में आगे कहा कि मेरे बारे में पूरी दुनिया जानती है, मैं क्षत्रिय कुल नाशक रहा हूँ। ऐसा वे राम और लक्ष्मण के क्षत्रिय होने के कारण कहते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपनी भुजा के बल से भूमि को राजा से विहीन कर दिया यानि राजाओं से भूमि जीत ली। ऐसा करने के बाद यानि राजाओं से भूमि जीतने के बाद परशुराम जी ने उस भूमि को दान के रुप में ब्राह्मणों को दे दिया। वे आगे कहते हैं कि उन्होंने अपने फरसे से सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया। वे अपनी गुणों की बखान आगे इस प्रकार करते हैं कि उनका फरसा मां के गर्भ में अवस्थित शिशु की हत्या करने में भी सक्षम है।
Question 5.लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
Answer:लक्ष्मण ने वीर योद्धा की इस प्रकार विशेषता बताई कि वीर योद्धा रणभूमि में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं। वे अपने रणकौशल को युद्धभूमि में प्रदर्शित किया जाना ही उचित समझते हैं। वे इस हेतु शक्ति एकत्रित करते हैं और अपनी उर्जा को व्यर्थ में बखान कर नहीं गंवाते हैं। इसके अलावा लक्ष्मण वीर योद्धा की विशेषताओं में उसका ब्राह्मणों, देवताओं, गाय और ईश्वर के भक्तों के प्रति उदार होना भी बताते हैं। लक्ष्मण की नजर में वीर योद्धा स्वभाव से काफी शांत होते हैं। उनमें विनम्रता कूट-कूट कर भरी होती है। उनमें धैर्य भी काफी होता है। इससे यह अर्थ भी सामने निकलकर आता है कि धैर्य तो अंतिम रुप से विजय मिल जाने तक योद्धा को धारण करना ही पड़ता है। इसके अलावा लक्ष्मण वीर योद्धा की अन्य विशेषताओं में उसका क्षोभरहित या कहें क्लेश रहित या विकार रहित होना भी एक जरूरत मानते हैं।
Question 6.साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथहन पर अपने विचार लिखिए।
Answer:उपरोक्त कथन सोलहों आने सत्य है। साहस और शक्ति हमें उपर वाले से मिला उपहार है। इस उपहार को विनम्रता ही संजोकर रखती है। कहने का अर्थ है हमारे अन्दर साहस का होना, हमारा शक्तिशाली होना हमारा नैसर्गिक गुण या हमारी प्रकृति या स्वभाव के अन्तर्गत हमें मिला होता है जबकि हमारी विनम्रता हमारे इस अनमोल धन को सुरक्षित रखती है और उसे पूंजी बनाती है या यूं कहें उसे भविष्य में काम आने लायक बनाती है। बिना विनम्रता के हमारा साहस और हमारी शक्ति एक बेलगाम घोड़े के समान है। इसलिए हम ऐसा भी कह सकते हैं कि साहस और शक्ति नामक घोड़े की लगाम विनम्रता नामक डोर से ही नियंत्रित की जा सकती है। विनम्रता के बिना सिर्फ साहस और शक्ति के बल पर हम अनियंत्रित होकर अपना बुरा ही कर सकते हैं। इसलिए साहस और शक्ति के मिष्ठान का आनंद विनम्रता की चाशनी में लपेटकर ही लिया जा सकता है।
Question 7.भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी।
अहो मुनीसु महाभट मानी।।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं।
जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
Answer:(क) परशुराम जी के लक्ष्मण को एक नासमझ हठी बालक से अधिक कुछ ना समझने पर और उन्हें अपनी महत्ता को स्वीकार करवाने हेतु अपनी बङाई करने पर लक्ष्मण जी भी थोड़ा ढीठ बन जाते हैं। वे मुस्कुरा कर परशुरामजी से कहते हैं कि हे मुनिवर! आप तो इतने बड़े महा अभिमानी योद्धा हैं। आप अपने फरसे का भय बार-बार दिखाकर मुझे डराने का प्रयास कर रहे हैं, मानो आप फूँक मारकर विशाल पर्वत को उड़ा देना चाहते हों।
(ख) परशुराम बार-बार तर्जनी उँगली दिखाकर लक्ष्मण को डराने का प्रयास कर रहे थे। यह देख लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि मैं सीताफल की नवजात बतिया (फल) के समान निर्बल नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी के इशारे से डर जाऊँगा। मैंने आपके प्रति जो कुछ भी कहा वह आपको फरसे और धनुष-बाण से सुसज्जित देखकर ही अभिमानपूर्वक कहा।
(ग) परशुराम के पराक्रम की कथा खुद उनके ही मुंह से सुनकर मुनि विश्वामित्र मन ही मन हंसने लगते हैं। वे परशुरामजी के विशेषकर लक्ष्मण को एक नासमझ हठी बालक की तरह समझने पर परशुरामजी की बुद्धि पर मन ही मन हंसते हैं। उन्हें लगता है कि परशुराम जी का क्षत्रियों को युद्ध में पराजित करना ठीक सावन के अंधे को सब जगह हरा ही हरा दिखाई देने के समान है। ये दोनों कुमार यानी राम-लक्ष्मण तो लोहे के समान कठोर हैं न कि ईंख के मीठे पोरों जैसे हैं जैसा कि परशुराम उनके बारे में समझ रहे हैं।
Question 8.पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
Answer:तुलसी का भाषा सौंदर्य अनुपम है। कहने का अर्थ है तुलसी ने अवधी भाषा में प्रस्तुत रचना ‘राम-लक्ष्मण -परशुराम संवाद’ में अनूठे भाव से अपनी बात कही है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित प्रस्तुत रचना के स्रोत रामचरितमानस जैसे महाकाव्य जैसे काव्य का कोई उदाहरण हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। प्रस्तुत रचना में इनकी भाषा को आम लोग भी पढ़ कर इसमें निहित भाव को आसानी से समझ सकते हैं| पूरी पंक्ति या पूर्ण दोहे को पढ़ने के बाद हमें इसका अर्थ समझ में आ जाता है। उदाहरण के तौर पर हम पद्यांश के अन्तर्गत आने वाले परशुराम के अपने को बाल ब्रह्मचारी बतलाने वाले प्रसंग को पढ़ने पर आसानी से समझ जाते हैं। एक अन्य प्रसंग में लक्ष्मण द्वारा परशुरामजी को अभिमानी बताना भी पाठक सरलता से समझ सकता है| इस प्रकार पाठकों के लिए यह पाठ आसान बन पड़ा है। इन सबका श्रेय तुलसी के अवधी भाषा में सरल लेखन को जाता है।
Question 9.इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
Answer:इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य हमें मिलता है। व्यंग्य की शुरुआत पाठ की तीसरी पंक्ति से ही होने लगती है-
सेवक सो जो करे सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।। कहने का अर्थ है सेवक वह है जो स्वामी की सेवा करता है। वह सेवक नहीं है जो हृदय में शत्रुता के भाव रखता है, वह तो शत्रु है।
दूसरे अवसर पर व्यंग्यपूर्ण बातों का क्रम तब देखने को मिलता है जब लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं-
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।। यहां लक्ष्मण जी परशुराम जी का उनसे धनुष टूटने के प्रश्न पर उत्तर देते हैं- श्री राम ने तो बाल्यकाल से अबतक खेल-खेल में न जाने कितने ही धनुष तोड़ डाले हैं। ये सारे धनुष एक समान से थे यानि कमजोर थे। आपका धनुष भी कमजोर था। इसमें भी श्रीराम को कोई नई बात नहीं दिखी। इस प्रकार यहां भी हमें व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य देखने को मिलता है।
एक अन्य अवसर पर लक्ष्मण परशुराम के दंभ एवं गर्वोक्ति पर व्यंग्य करते हैं-
पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँक पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मर जाहीं।।
× × × ×
कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।
यहां भी लक्ष्मण जी व्यंग्यपूर्ण बोली में परशुरामजी से कहते हैं- आप मुझे बार-बार अपना फरसा दिखा कर डरा रहे हैं। जैसे कि आप के अन्दर फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का बल मौजूद हो। वे फिर परशुरामजी से कहते हैं कि यहां कोई कुम्हरा का नया फूल नहीं है जो तर्जनी उंगली दिखाने मात्र ही से कुम्हला जाता है, मर जाता है। किसी को क्षति पहुंचाने हेतु आपके कटु वचन ही काफी हैं। फिर आपने वाणों को व्यर्थ में ही धारण कर रखा है।
एक अन्य अवसर पर लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण बातें देखिए-
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। ब्रिप विचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
यहां पर भी लक्ष्मण जी अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी में परशुरामजी के क्रोध को भड़काते हुए उनसे कहते हैं कि हे भृगुवंशी! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हैं। मैं आपको ब्राह्मण जानकर विवश हूँ। आपने कई राजाओं को युद्ध में पराजित किया होगा, उनकी हत्या कर दी होगी। आपको कोई ठीक योद्धा आजतक मिला ही नहीं होगा सबके सब कमजोर होंगे। इस प्रकार हम पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य पाते हैं।
Question 10.निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा।।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
Answer:(क) ‘बालक बोलि बधौं नहिं तोही’ में ‘ब’ वर्ग की आवृत्ति होने पर अनुप्रसास अलंकार है।
(ख) ‘‘कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।’’ उपमेय ‘बचन’ की उपमान ‘कुलिस’ से समानता दिखाने पर यहाँ उपमा अलंकार है। ‘कोटि कुलिस’ में ‘क’ वर्ग की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।
(ग) ‘‘तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा’’
यहाँ उत्प्रेक्षा वाचक शब्द ‘जनु’ से उत्प्रेक्षा-अलंकार है।
‘‘बार-बार मोहि लागि बोलावा’’ में बार-बार शब्द की आवृत्ति होने पर पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(घ) ‘लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु’ में उपमावाचक शब्द ‘सरिस’ के प्रयोग से उपमा अलंकार
Question 11.‘‘सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।’’
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
Answer:क्रोध सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का होता है। व्यक्ति के अहंकार को चोट पहुंचने पर उसकी पहली प्रतिक्रिया के रूप में जो क्रोध बाहर निकलकर सामने आता है वह श्रेष्ठ दर्जे का क्रोध नहीं है। हमें यह आश्चर्य लग सकता है कि भला क्रोध का भी स्तर हो सकता है और वह भी श्रेष्ठ दर्जे का क्रोध! पर हम इस तरह से मान सकते हैं कि जो क्रोध हमारे आत्मसम्मान के आहत होने पर हमारे अन्दर से उभरता है उसका भाव अधिक स्थायी होने से इसका प्रभाव हमें आत्मविवेचना कर अपने आप को और अधिक अच्छा बनाने का अवसर प्रदान करता है। जो क्रोध हमारे स्वाभिमान के आहत होने पर उभरता है वह जरा कम श्रेष्ठ दर्जे का क्रोध है। उपरोक्त सभी प्रकार के क्रोध हालांकि सकारात्मक भाव लिये हुए हैं क्योंकि ये हमारे व्यक्तित्व को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल नकारात्मक क्रोध की बात भी करते हैं। नकारात्मक क्रोध वह है जो किसी व्यक्ति के मन में अन्य की सफलता देखकर उसकी खुशी से ईर्ष्या करने पर उभरता है। आज के भौतिकवादी समय में इस प्रकार के क्रोध करने वाले लोगों की संख्या बढती ही जा रही है । इस प्रकार का क्रोध आज हमारे समाज में अशांति बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण बन रहा है। इस प्रकार का क्रोध सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव वाला बनकर भी उभर रहा है।
Question 12.संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
Answer:मेरा व्यवहार श्रीराम के व्यवहार जैसा होता यानि गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रस्तुत रचना में मैं अपने आप को श्रीराम के रोल में रखता। यहां मैं अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उदंडता करते हुए देखने पर स्थिति को बिगड़ने से पहले ही श्रीराम की तरह बीच में पड़कर स्थिति को और बिगड़ने से पहले ही रोक देता। मैं बिल्कुल श्रीराम की तरह वह करने का प्रयास करता जो करने में लक्ष्मण जी चूक गये। कहने का अर्थ है मैं युक्तिपूर्ण ढंग से परशुरामजी की बातों का इस प्रकार से उत्तर देता कि वे शांत हो जाते नाकि लक्ष्मण जी की तरह का व्यवहार कर यानि व्यंगोक्ति कर उनके गुस्से को और अधिक भड़काता| मैं श्रीराम के लहजे में परशुरामजी की कम से कम उम्र का ध्यान रखता और उनसे फालतू में ना उलझता। मैं परशुरामजी से शिव धनुष तोड़ने की माफी मांग लेता और उनसे धनुष टूटने की परस्थिति के कारणों पर उनसे चर्चा करता और किसी सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करता। मैं श्रीराम की तरह परशुरामजी से लक्ष्मण का उनका गुस्सा भड़काने को लेकर क्षमा मांगकर उनके ना मानने पर लक्ष्मण को उनसे क्षमा मांगने को कहता। हालांकि मुझे पूरी उम्मीद है कि ऐसा करने से पहले ही परशुराम जी का क्रोध शांत हो जाता और वे मेरे क्षमा मांगने पर मेरे छोटे भाई लक्ष्मण को क्षमा कर देते।
Question 13.अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
Answer:मेरा पड़ोसी बहुत ही शांत स्वभाव का है। कई बार गंभीर परिस्थिति उत्पन्न होने पर भी मेरा मित्र हमेशा समझदारी का परिचय देता है। वह पढ़ाई-लिखाई के मामले में बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का रहा है। उसकी अन्य मामलों तो कोई खास उपलब्धि मेरी नजर में नहीं आयी है पर उसने पढ़ाई में अपनी लगन के कारण अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली। उसका बचपन से मुझे कहना है कि मित्र- प्रत्येक मामले में अच्छा बनने से अच्छा है किसी एक चीज में अपना संपूर्ण ध्यान लगाया जाय। उसका कहना था कि ऐसा करने से कुछ और मिले या न मिले हमें वह चीज जरूर मिलती है जिसपर हमने अपना संपूर्ण ध्यान लगाया होता है जिसे अपने जीने का मकसद बनाया होता है। उसका यह भी मानना था कि एकहि साधे सब सधै। कहने का अर्थ है वह अंग्रेजी मुहावरे जैक ऑफ ऑल एण्ड मास्टर ऑफ नन जिसका अर्थ भी वही है के अन्दर छिपे हुए भाव को मानने वाला था और इस प्रकार वह किसी एक चीज के विशेषज्ञ बनने में ही अपनी सारी क्षमता का प्रयोग करना चाहता था।।
Question 14.दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए- इस शीर्ष को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
Answer:मुझे यहां अपने मित्र की सहन शक्ति की एक कहानी याद आ रही है। वह बुद्धि की क्षमता को सर्वश्रेष्ठ मानता था और किसी से सामने होकर लड़ने में उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी। एक बार क्या हुआ कि उसके पड़ोसी के नारियल के पेड़ काफी उंचे हो गये थे। और उसमें फल निकल आये थे। अब क्या हुआ कि उसे अपने उस दबंग पडोसी से इस बारे में कहा नहीं गया कि चूंकि नारियल के पेड़ का कुछ भाग उसकी भूमि पर पड़ता है इसिलिए वे इसका कुछ उपाय करें। ऐसा कहने के बजाय उन्होंने अपने बरामदे पर एक शेडनुमा छतरी डलवा दी। इसका फायदा उन्हें यह हुआ कि उन्हें जब कभी भी अपने आराम के लिए शेड की जरूरत पड़ती वह इसे बनाने के पहले योजना बनाकर ऐसा करते। ऐसी योजना उन्हें नहीं बनानी पड़ी| उचित समय पर उचित बुद्धि का प्रयोग करने पर उन्हें आराम मिला और समाज की नजर में भी वे भले मानुष कहलाये।
नोट- इस कहानी से प्रेरणा मिलती है कि बुद्धि की क्षमता ही सर्वश्रेष्ठ है।
Question 15.उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
Answer:मैंनें अन्याय का प्रतिकार किया है। ऐसा अवसर मेरी जिन्दगी में अपने विद्यार्थी जीवन में अपनी 10वीं कक्षा की पढ़ाई करने के दौरान आया। मुझे अपने विद्यालय के ठीक ठाक छात्र होने पर उस वर्ष की आगामी सरस्वती पूजन हेतु राशि एकत्र करने का मुख्य जिम्मा सौंपा गया था। मैंने खुशी-खुशी विभिन्न कक्षाओं में जा जाकर राशि एकत्र करनी शूरू की। जब राशि पूर्ण होने को आई तब अचानक हमारे क्लास टीचर ने मुझसे कैम्पस के अन्दर ही उचित स्थान पर सारे पैसे ले लिये और उन्होंने मुझे अब आगे चन्दा एकत्र करने के प्रभार से मुक्त कर दिया। उनका मेरे एक बच्चा होने के कारण मुझपर विश्वास नहीं था कि यह बच्चा इस दायित्व को निभा पायेगाया नहीं। मैं अन्दर ही अन्दर इस बात पर नहीं कि चंदा एकत्रित करने से मुझे रोक दिया गया है बल्कि मुझे बच्चा समझने पर रोक दिया गया इस कारण रो पड़ा और व्यथित हो गया| प्रतिकार के रुप में मैंने अन्य शिक्षकों और अन्य लोगों से इसके बारे में शिकायत दर्ज कराई।
Question 16.अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रें में बोली जाती है?
Answer:अवधी भाषा अवध-क्षेत्र में बोली जाती है। अवधी भाषा का प्रचलित रूप आजकल लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जोनपुर, मिर्जापुर आदि या कहें की पूर्वी उत्तर प्रदेश में अवधी भाषा बोली जाती है। कहने का अर्थ है लखनऊ क्षेत्र जिसे पहले सेंट्रल प्रोविन्स के रूप में जाना जाता था। आज या अंग्रेजों के शासन से पहले यही क्षेत्र अवध के नाम से जाना जाता था। भक्तिकाल के कवियों के समय या कहें पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में अवधि भाषा अपने उत्कृष्ट रूप में यहां रहने वाले लोगोँ के सामने आई और कई महान कवियों और साहित्यकारों ने इस भाषा में साहित्य की रचना की और इसका प्रचलन यानि अवधी में उत्कृष्ट लेखन का कार्य आजतक जारी है| जो इन क्षेत्रों में अवधी भाषा के बोले जाने के कारण ही संभव हो पाया है|
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
Answer:
प्रस्तुत काव्य रचना गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखे गये रामचरितमानस के बालकाण्ड से ली गयी है| सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव धनुष तोड़ दिये जाने पर परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने कई तर्क दिये। उन्होंने परशुराम से इस बारे में कहा की श्री राम ने आजतक खेल-खेल में कई धनुष तोड़े हैं। वे सारे धनुष कमजोर थे। किसी ने तो आजतक उन धनुषों के टूटने पर इस बारे में श्रीराम से या मुझसे पूछताछ नहीं की। उन्होंने आगे परशुराम से कहा कि जिस धनुष के टूटने की अभी आप बात कर रहें हैं वह धनुष भी काफी कमजोर था। ऐसा प्रतीत हो ही रहा था कि धनुष एक झटके में टूट जाएगा क्योंकि यह धनुष काफी पुराना लग रहा था और यह काफी जर्जर भी हो चुका था। इसमें कौन सी ऐसी अचरज की बात है कि यह श्री राम के हाथ लगाने मात्र से टूट गया।
Question 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
Answer:
परशुराम के क्रोध करने पर राम-लक्ष्मण की प्रतिक्रियाएं हम भिन्न रूप में पाते हैं। जहाँ एक ओर राम अपनी प्रतिक्रिया में संयम का परिचय देते हैं| वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण द्वारा परशुरामको को कटु वचन कहकर वह अपने उग्र स्वभाव का ही परिचय देते हैं। शिवधनुष टूटने पर परशुराम द्वारा इस बारे में पूछने पर जहां राम शांत रहते हैं वहीं लक्ष्मण बार-बार परशुराम को अपने कटु वचनों से और अधिक क्रोधित ही पाते हैं। स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो लक्ष्मण काम बिगाड़ने वाली बात बोलते हैं। ऐसा स्वभाव उनके कम उम्र के होने के कारण पाते हैं। वह परशुराम पर अपना व्यंग्य वाण भी चलाते हैं और बार-बार वे परशुराम के ईंट का जवाब पत्थर से देते हैं। वहीं राम उन दोनों के बीच बात बिगङती देख अपने शीतल वचनों से परशुराम की क्रोधाग्नि शांत करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार श्रीराम की प्रतिक्रिया में हम मर्यादा पुरुषोत्तम की उनकी छवि की झलक पाते हैं।
Question 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
Answer:
मुझे लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का यह अंश ‘‘तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा। बार-बार मोहि लागि बोलावा’’ विशेष रूप से अच्छा लगा। यह अंश संवाद शैली में निम्नलिखित है-
परशुराम अपनी वीरता की डींग हाँकते हुए लक्ष्मण को डराने के लिए बार-बार फरसा दिखा रहे हैं। लक्ष्मण व्यंग्य वाणी में परशुराम से कहते है।-
लक्ष्मण- आप तो बार-बार मेरे लिए काल (मौत) को बुलाए जा रहे हैं। यहां पर रचियता गोस्वामी तुलसीदास लक्ष्मण के उग्र स्वभाव से हमें परिचित कराते हैं। लक्ष्मण जी का पाला परशुरामजी से पड़ा था जो अपने गुरु शिव के धनुष को श्री राम द्वारा तोङ दिये जाने से अति क्रोधित हुए जा रहे थे। उनकी वेदना को लक्ष्मण समझ नहीं पा रहे थे और वे परशुराम की ईंट का जवाब पत्थर से दे रहे थे। इसीलिये परशुराम द्वारा बार-बार फरसा दिखाने पर लक्ष्मण परशुराम को उकसाने हेतु व्यंग्य वाणी में उनसे कह पड़ते हैं-आप तो बार-बार मेरे लिए काल (मौत)को बुलाये जा रहे हैं।
परशुराम- तुम जैसे धृष्ट बाल के लिए यही उचित है। यहाँ पर लक्ष्मण जी के उपरोक्त ढंग से परशुराम को जवाब देने से परशुराम उन्हें उनकी हद बताते हैं। वे लक्ष्मण जी को एक हठी बालक कहकर संबोधित करते हैं। और उन्हें इशारों ही इशारों में नासमझ भी कह डालते हैं। लक्ष्मण जी के लिए परशुराम अपना व्यवहार उचित ठहराते हैं और इसिलिए वे ऐसा कह उठते हैं।
लक्ष्मण- काल कोई आपका नौकर है जो आपके बुलाने से भागा-भागा चला आएगा। यहां पर लक्ष्मण पुनः परशुराम की उन्हें हठी बालक ठहराने की बात पर उनके गुस्से को और भड़काने के उद्देश्य से ही उन्हें ऐसा कहते हैं और लक्ष्मण जी द्वारा ऐसा करने के पीछे एकमात्र कारण परशुरामजी द्वारा धनुष तोड़ने वाले यानि उनके बड़े भाई राम को दण्ड देने के बारे में भरी सभा में उद्घोषणा करने को लेकर है।
Question 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वहिदित श्रत्रियकुल द्रोही।।
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
Answer:
परशुराम ने सभा में अपने ब्रह्मचारी होने के बारे में सबको बताया। उन्होंने भरी सभा में अपने बारे में आगे कहा कि मेरे बारे में पूरी दुनिया जानती है, मैं क्षत्रिय कुल नाशक रहा हूँ। ऐसा वे राम और लक्ष्मण के क्षत्रिय होने के कारण कहते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपनी भुजा के बल से भूमि को राजा से विहीन कर दिया यानि राजाओं से भूमि जीत ली। ऐसा करने के बाद यानि राजाओं से भूमि जीतने के बाद परशुराम जी ने उस भूमि को दान के रुप में ब्राह्मणों को दे दिया। वे आगे कहते हैं कि उन्होंने अपने फरसे से सहस्रबाहु की भुजाओं को काट दिया। वे अपनी गुणों की बखान आगे इस प्रकार करते हैं कि उनका फरसा मां के गर्भ में अवस्थित शिशु की हत्या करने में भी सक्षम है।
Question 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
Answer:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की इस प्रकार विशेषता बताई कि वीर योद्धा रणभूमि में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं। वे अपने रणकौशल को युद्धभूमि में प्रदर्शित किया जाना ही उचित समझते हैं। वे इस हेतु शक्ति एकत्रित करते हैं और अपनी उर्जा को व्यर्थ में बखान कर नहीं गंवाते हैं। इसके अलावा लक्ष्मण वीर योद्धा की विशेषताओं में उसका ब्राह्मणों, देवताओं, गाय और ईश्वर के भक्तों के प्रति उदार होना भी बताते हैं। लक्ष्मण की नजर में वीर योद्धा स्वभाव से काफी शांत होते हैं। उनमें विनम्रता कूट-कूट कर भरी होती है। उनमें धैर्य भी काफी होता है। इससे यह अर्थ भी सामने निकलकर आता है कि धैर्य तो अंतिम रुप से विजय मिल जाने तक योद्धा को धारण करना ही पड़ता है। इसके अलावा लक्ष्मण वीर योद्धा की अन्य विशेषताओं में उसका क्षोभरहित या कहें क्लेश रहित या विकार रहित होना भी एक जरूरत मानते हैं।
Question 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथहन पर अपने विचार लिखिए।
Answer:
उपरोक्त कथन सोलहों आने सत्य है। साहस और शक्ति हमें उपर वाले से मिला उपहार है। इस उपहार को विनम्रता ही संजोकर रखती है। कहने का अर्थ है हमारे अन्दर साहस का होना, हमारा शक्तिशाली होना हमारा नैसर्गिक गुण या हमारी प्रकृति या स्वभाव के अन्तर्गत हमें मिला होता है जबकि हमारी विनम्रता हमारे इस अनमोल धन को सुरक्षित रखती है और उसे पूंजी बनाती है या यूं कहें उसे भविष्य में काम आने लायक बनाती है। बिना विनम्रता के हमारा साहस और हमारी शक्ति एक बेलगाम घोड़े के समान है। इसलिए हम ऐसा भी कह सकते हैं कि साहस और शक्ति नामक घोड़े की लगाम विनम्रता नामक डोर से ही नियंत्रित की जा सकती है। विनम्रता के बिना सिर्फ साहस और शक्ति के बल पर हम अनियंत्रित होकर अपना बुरा ही कर सकते हैं। इसलिए साहस और शक्ति के मिष्ठान का आनंद विनम्रता की चाशनी में लपेटकर ही लिया जा सकता है।
Question 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी।
अहो मुनीसु महाभट मानी।।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं।
जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
Answer:
(क) परशुराम जी के लक्ष्मण को एक नासमझ हठी बालक से अधिक कुछ ना समझने पर और उन्हें अपनी महत्ता को स्वीकार करवाने हेतु अपनी बङाई करने पर लक्ष्मण जी भी थोड़ा ढीठ बन जाते हैं। वे मुस्कुरा कर परशुरामजी से कहते हैं कि हे मुनिवर! आप तो इतने बड़े महा अभिमानी योद्धा हैं। आप अपने फरसे का भय बार-बार दिखाकर मुझे डराने का प्रयास कर रहे हैं, मानो आप फूँक मारकर विशाल पर्वत को उड़ा देना चाहते हों।
(ख) परशुराम बार-बार तर्जनी उँगली दिखाकर लक्ष्मण को डराने का प्रयास कर रहे थे। यह देख लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि मैं सीताफल की नवजात बतिया (फल) के समान निर्बल नहीं हूँ जो आपकी तर्जनी के इशारे से डर जाऊँगा। मैंने आपके प्रति जो कुछ भी कहा वह आपको फरसे और धनुष-बाण से सुसज्जित देखकर ही अभिमानपूर्वक कहा।
(ग) परशुराम के पराक्रम की कथा खुद उनके ही मुंह से सुनकर मुनि विश्वामित्र मन ही मन हंसने लगते हैं। वे परशुरामजी के विशेषकर लक्ष्मण को एक नासमझ हठी बालक की तरह समझने पर परशुरामजी की बुद्धि पर मन ही मन हंसते हैं। उन्हें लगता है कि परशुराम जी का क्षत्रियों को युद्ध में पराजित करना ठीक सावन के अंधे को सब जगह हरा ही हरा दिखाई देने के समान है। ये दोनों कुमार यानी राम-लक्ष्मण तो लोहे के समान कठोर हैं न कि ईंख के मीठे पोरों जैसे हैं जैसा कि परशुराम उनके बारे में समझ रहे हैं।
Question 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
Answer:
तुलसी का भाषा सौंदर्य अनुपम है। कहने का अर्थ है तुलसी ने अवधी भाषा में प्रस्तुत रचना ‘राम-लक्ष्मण -परशुराम संवाद’ में अनूठे भाव से अपनी बात कही है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित प्रस्तुत रचना के स्रोत रामचरितमानस जैसे महाकाव्य जैसे काव्य का कोई उदाहरण हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। प्रस्तुत रचना में इनकी भाषा को आम लोग भी पढ़ कर इसमें निहित भाव को आसानी से समझ सकते हैं| पूरी पंक्ति या पूर्ण दोहे को पढ़ने के बाद हमें इसका अर्थ समझ में आ जाता है। उदाहरण के तौर पर हम पद्यांश के अन्तर्गत आने वाले परशुराम के अपने को बाल ब्रह्मचारी बतलाने वाले प्रसंग को पढ़ने पर आसानी से समझ जाते हैं। एक अन्य प्रसंग में लक्ष्मण द्वारा परशुरामजी को अभिमानी बताना भी पाठक सरलता से समझ सकता है| इस प्रकार पाठकों के लिए यह पाठ आसान बन पड़ा है। इन सबका श्रेय तुलसी के अवधी भाषा में सरल लेखन को जाता है।
Question 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
Answer:
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य हमें मिलता है। व्यंग्य की शुरुआत पाठ की तीसरी पंक्ति से ही होने लगती है-
सेवक सो जो करे सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।। कहने का अर्थ है सेवक वह है जो स्वामी की सेवा करता है। वह सेवक नहीं है जो हृदय में शत्रुता के भाव रखता है, वह तो शत्रु है।
दूसरे अवसर पर व्यंग्यपूर्ण बातों का क्रम तब देखने को मिलता है जब लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं-
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।। यहां लक्ष्मण जी परशुराम जी का उनसे धनुष टूटने के प्रश्न पर उत्तर देते हैं- श्री राम ने तो बाल्यकाल से अबतक खेल-खेल में न जाने कितने ही धनुष तोड़ डाले हैं। ये सारे धनुष एक समान से थे यानि कमजोर थे। आपका धनुष भी कमजोर था। इसमें भी श्रीराम को कोई नई बात नहीं दिखी। इस प्रकार यहां भी हमें व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य देखने को मिलता है।
एक अन्य अवसर पर लक्ष्मण परशुराम के दंभ एवं गर्वोक्ति पर व्यंग्य करते हैं-
पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँक पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मर जाहीं।।
× × × ×
कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।
यहां भी लक्ष्मण जी व्यंग्यपूर्ण बोली में परशुरामजी से कहते हैं- आप मुझे बार-बार अपना फरसा दिखा कर डरा रहे हैं। जैसे कि आप के अन्दर फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का बल मौजूद हो। वे फिर परशुरामजी से कहते हैं कि यहां कोई कुम्हरा का नया फूल नहीं है जो तर्जनी उंगली दिखाने मात्र ही से कुम्हला जाता है, मर जाता है। किसी को क्षति पहुंचाने हेतु आपके कटु वचन ही काफी हैं। फिर आपने वाणों को व्यर्थ में ही धारण कर रखा है।
एक अन्य अवसर पर लक्ष्मण की व्यंग्यपूर्ण बातें देखिए-
भृगुबर परसु देखाबहु मोही। ब्रिप विचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
यहां पर भी लक्ष्मण जी अपनी व्यंग्यपूर्ण वाणी में परशुरामजी के क्रोध को भड़काते हुए उनसे कहते हैं कि हे भृगुवंशी! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हैं। मैं आपको ब्राह्मण जानकर विवश हूँ। आपने कई राजाओं को युद्ध में पराजित किया होगा, उनकी हत्या कर दी होगी। आपको कोई ठीक योद्धा आजतक मिला ही नहीं होगा सबके सब कमजोर होंगे। इस प्रकार हम पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य पाते हैं।
Question 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा।।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
Answer:
(क) ‘बालक बोलि बधौं नहिं तोही’ में ‘ब’ वर्ग की आवृत्ति होने पर अनुप्रसास अलंकार है।
(ख) ‘‘कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।’’ उपमेय ‘बचन’ की उपमान ‘कुलिस’ से समानता दिखाने पर यहाँ उपमा अलंकार है। ‘कोटि कुलिस’ में ‘क’ वर्ग की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।
(ग) ‘‘तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा’’
यहाँ उत्प्रेक्षा वाचक शब्द ‘जनु’ से उत्प्रेक्षा-अलंकार है।
‘‘बार-बार मोहि लागि बोलावा’’ में बार-बार शब्द की आवृत्ति होने पर पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(घ) ‘लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु’ में उपमावाचक शब्द ‘सरिस’ के प्रयोग से उपमा अलंकार
Question 11.
‘‘सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।’’
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
Answer:
क्रोध सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का होता है। व्यक्ति के अहंकार को चोट पहुंचने पर उसकी पहली प्रतिक्रिया के रूप में जो क्रोध बाहर निकलकर सामने आता है वह श्रेष्ठ दर्जे का क्रोध नहीं है। हमें यह आश्चर्य लग सकता है कि भला क्रोध का भी स्तर हो सकता है और वह भी श्रेष्ठ दर्जे का क्रोध! पर हम इस तरह से मान सकते हैं कि जो क्रोध हमारे आत्मसम्मान के आहत होने पर हमारे अन्दर से उभरता है उसका भाव अधिक स्थायी होने से इसका प्रभाव हमें आत्मविवेचना कर अपने आप को और अधिक अच्छा बनाने का अवसर प्रदान करता है। जो क्रोध हमारे स्वाभिमान के आहत होने पर उभरता है वह जरा कम श्रेष्ठ दर्जे का क्रोध है। उपरोक्त सभी प्रकार के क्रोध हालांकि सकारात्मक भाव लिये हुए हैं क्योंकि ये हमारे व्यक्तित्व को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल नकारात्मक क्रोध की बात भी करते हैं। नकारात्मक क्रोध वह है जो किसी व्यक्ति के मन में अन्य की सफलता देखकर उसकी खुशी से ईर्ष्या करने पर उभरता है। आज के भौतिकवादी समय में इस प्रकार के क्रोध करने वाले लोगों की संख्या बढती ही जा रही है । इस प्रकार का क्रोध आज हमारे समाज में अशांति बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण बन रहा है। इस प्रकार का क्रोध सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव वाला बनकर भी उभर रहा है।
Question 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
Answer:
मेरा व्यवहार श्रीराम के व्यवहार जैसा होता यानि गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रस्तुत रचना में मैं अपने आप को श्रीराम के रोल में रखता। यहां मैं अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उदंडता करते हुए देखने पर स्थिति को बिगड़ने से पहले ही श्रीराम की तरह बीच में पड़कर स्थिति को और बिगड़ने से पहले ही रोक देता। मैं बिल्कुल श्रीराम की तरह वह करने का प्रयास करता जो करने में लक्ष्मण जी चूक गये। कहने का अर्थ है मैं युक्तिपूर्ण ढंग से परशुरामजी की बातों का इस प्रकार से उत्तर देता कि वे शांत हो जाते नाकि लक्ष्मण जी की तरह का व्यवहार कर यानि व्यंगोक्ति कर उनके गुस्से को और अधिक भड़काता| मैं श्रीराम के लहजे में परशुरामजी की कम से कम उम्र का ध्यान रखता और उनसे फालतू में ना उलझता। मैं परशुरामजी से शिव धनुष तोड़ने की माफी मांग लेता और उनसे धनुष टूटने की परस्थिति के कारणों पर उनसे चर्चा करता और किसी सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करता। मैं श्रीराम की तरह परशुरामजी से लक्ष्मण का उनका गुस्सा भड़काने को लेकर क्षमा मांगकर उनके ना मानने पर लक्ष्मण को उनसे क्षमा मांगने को कहता। हालांकि मुझे पूरी उम्मीद है कि ऐसा करने से पहले ही परशुराम जी का क्रोध शांत हो जाता और वे मेरे क्षमा मांगने पर मेरे छोटे भाई लक्ष्मण को क्षमा कर देते।
Question 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
Answer:
मेरा पड़ोसी बहुत ही शांत स्वभाव का है। कई बार गंभीर परिस्थिति उत्पन्न होने पर भी मेरा मित्र हमेशा समझदारी का परिचय देता है। वह पढ़ाई-लिखाई के मामले में बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का रहा है। उसकी अन्य मामलों तो कोई खास उपलब्धि मेरी नजर में नहीं आयी है पर उसने पढ़ाई में अपनी लगन के कारण अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली। उसका बचपन से मुझे कहना है कि मित्र- प्रत्येक मामले में अच्छा बनने से अच्छा है किसी एक चीज में अपना संपूर्ण ध्यान लगाया जाय। उसका कहना था कि ऐसा करने से कुछ और मिले या न मिले हमें वह चीज जरूर मिलती है जिसपर हमने अपना संपूर्ण ध्यान लगाया होता है जिसे अपने जीने का मकसद बनाया होता है। उसका यह भी मानना था कि एकहि साधे सब सधै। कहने का अर्थ है वह अंग्रेजी मुहावरे जैक ऑफ ऑल एण्ड मास्टर ऑफ नन जिसका अर्थ भी वही है के अन्दर छिपे हुए भाव को मानने वाला था और इस प्रकार वह किसी एक चीज के विशेषज्ञ बनने में ही अपनी सारी क्षमता का प्रयोग करना चाहता था।।
Question 14.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए- इस शीर्ष को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
Answer:
मुझे यहां अपने मित्र की सहन शक्ति की एक कहानी याद आ रही है। वह बुद्धि की क्षमता को सर्वश्रेष्ठ मानता था और किसी से सामने होकर लड़ने में उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी। एक बार क्या हुआ कि उसके पड़ोसी के नारियल के पेड़ काफी उंचे हो गये थे। और उसमें फल निकल आये थे। अब क्या हुआ कि उसे अपने उस दबंग पडोसी से इस बारे में कहा नहीं गया कि चूंकि नारियल के पेड़ का कुछ भाग उसकी भूमि पर पड़ता है इसिलिए वे इसका कुछ उपाय करें। ऐसा कहने के बजाय उन्होंने अपने बरामदे पर एक शेडनुमा छतरी डलवा दी। इसका फायदा उन्हें यह हुआ कि उन्हें जब कभी भी अपने आराम के लिए शेड की जरूरत पड़ती वह इसे बनाने के पहले योजना बनाकर ऐसा करते। ऐसी योजना उन्हें नहीं बनानी पड़ी| उचित समय पर उचित बुद्धि का प्रयोग करने पर उन्हें आराम मिला और समाज की नजर में भी वे भले मानुष कहलाये।
नोट- इस कहानी से प्रेरणा मिलती है कि बुद्धि की क्षमता ही सर्वश्रेष्ठ है।
Question 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
Answer:
मैंनें अन्याय का प्रतिकार किया है। ऐसा अवसर मेरी जिन्दगी में अपने विद्यार्थी जीवन में अपनी 10वीं कक्षा की पढ़ाई करने के दौरान आया। मुझे अपने विद्यालय के ठीक ठाक छात्र होने पर उस वर्ष की आगामी सरस्वती पूजन हेतु राशि एकत्र करने का मुख्य जिम्मा सौंपा गया था। मैंने खुशी-खुशी विभिन्न कक्षाओं में जा जाकर राशि एकत्र करनी शूरू की। जब राशि पूर्ण होने को आई तब अचानक हमारे क्लास टीचर ने मुझसे कैम्पस के अन्दर ही उचित स्थान पर सारे पैसे ले लिये और उन्होंने मुझे अब आगे चन्दा एकत्र करने के प्रभार से मुक्त कर दिया। उनका मेरे एक बच्चा होने के कारण मुझपर विश्वास नहीं था कि यह बच्चा इस दायित्व को निभा पायेगाया नहीं। मैं अन्दर ही अन्दर इस बात पर नहीं कि चंदा एकत्रित करने से मुझे रोक दिया गया है बल्कि मुझे बच्चा समझने पर रोक दिया गया इस कारण रो पड़ा और व्यथित हो गया| प्रतिकार के रुप में मैंने अन्य शिक्षकों और अन्य लोगों से इसके बारे में शिकायत दर्ज कराई।
Question 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रें में बोली जाती है?
Answer:
अवधी भाषा अवध-क्षेत्र में बोली जाती है। अवधी भाषा का प्रचलित रूप आजकल लखनऊ, अयोध्या, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जोनपुर, मिर्जापुर आदि या कहें की पूर्वी उत्तर प्रदेश में अवधी भाषा बोली जाती है। कहने का अर्थ है लखनऊ क्षेत्र जिसे पहले सेंट्रल प्रोविन्स के रूप में जाना जाता था। आज या अंग्रेजों के शासन से पहले यही क्षेत्र अवध के नाम से जाना जाता था। भक्तिकाल के कवियों के समय या कहें पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में अवधि भाषा अपने उत्कृष्ट रूप में यहां रहने वाले लोगोँ के सामने आई और कई महान कवियों और साहित्यकारों ने इस भाषा में साहित्य की रचना की और इसका प्रचलन यानि अवधी में उत्कृष्ट लेखन का कार्य आजतक जारी है| जो इन क्षेत्रों में अवधी भाषा के बोले जाने के कारण ही संभव हो पाया है|